जब प्रकृति का हृदयस्पर्शी कोलाहल, भयानक सन्नाटे का रूप ले ले.......जब संसार का विस्तृत प्रकाश अपने विश्रामगृह मे चला जाए, जब गहन अंधकार की असीमित चादर से पूरा दृश्यमान संसार ढक जाए,........उस भयावह प्राकृतिक दृश्य को ''रात'' कहते है!.............और यही रात जब किसी पर मुसीबत बनकर अचानक टूट पड़े तो,.............'अविस्मरणीय रात' बन जाती है! ऐसी ही एक रात की कहानी, अपनी खुद की ज़ुबानी आपको सुनाता हू............बात साल २००८ की है, जब मैं मार्केटिंग मॅनेज्मेंट की ट्रैनिंग मे पटना [बिहार] मे था. जी हा!.......बिहार!........नाम सुनते ही मन मे एक बार भूकंप आ ही जाता है.
कंपनी के एक पुराने क्लाइंट से मिलने के लिए मुझे ''पुनपुन'' जिले मे जाना था......जिले का नाम सुनकर तो मेरी खूब हँसी छूटी, पर मुझे नही पता था की आने वाले आठ- दस घंटो मे यही हँसी मेरी मुसीबत बनने वाली है. तकरीबन दोपहर के १.०० बजे की पेसेनजर से मैं पटना से पुनपुन के लिए रवाना हुआ.....पेनसेंजर से पुनपुन पहुचने मे ५-६ घंटे लगते है. ५-६ घंटो के लिए मैं पुनपुन के नाम की रहस्यमयी हँसी मन मे दबाकर शांति से ट्रेन मे बैठा रहा.........आपको बता दूं की रहस्यमयी नॉवेल्स पढ़ने के अलावा ट्रेन का सफ़र भी मुझे जिंदगी का खूबसूरत लम्हा लगता है. ट्रेन से बिहार दर्शन का पूरा मज़ा लेते हुए मैं आख़िरकार पुनपुन पहुँच ही गया. ट्रेन से मुझे लेकर कुल ७-८ पेसेनजर ही उतरे......उस स्टेशन पर!.........ट्रेन के चले जाने के बाद मैं चारो ओर घूम- घूम कर देखा..........अत्यंत सुंदर और मनोरम दृश्य था पुनपुन का........... एक पुराना और खंडहर जैसा स्टेशन,......अत्यंत विशालकाय सर्प की तरह ज़मीन से गुज़री दो रेल की पटरियाँ और दोनो ओर तकरीबन २२-२५ मीटर लंबी कच्ची प्लेटफॉर्म, जिस पर कुछ- कुछ दूरी पर पत्थर की बेंच रखी हुई थी. स्टेशन के एक तरफ तकरीबन मीलो दूरी तक सिर्फ़ खेत ही खेत थे......धरती पूरी हरियाली से भरी थी. दृश्य की आख़िरी छोर पर सिर्फ़ अनगिनत पेड़ थे.........और दूसरी ओर घना जंगल!........मन को भा चूका था वह स्थान!.........फिर आखिर में प्लेटफोर्म के आखिरी छोर पर लगे बोर्ड पर पुनपुन लिखा हुआ पढ़कर मुझे हंसी आ गयी!.........जैसे कोई पुराने टेलीफिल्म का कोई सीन हो!...............फिर मैंने स्टेशन के पास वाले ढाबे में नाश्ता किया और ढाबे वाले से पटना जाने वाली आखिरी ट्रेन और गंतव्य का पता पूँछ कर मै उस गाँव की और चल दिया.........कुछ दूर चलने पर एक टेम्पो मिल गया. उसमे बैठे ग्रामीण मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे कोई अजूबा देख लिया हो!.......गांव की कच्ची सड़के और वर्षो पुराना टेम्पो!.........पेट की हालत को एकदम ख़राब हो गई.......और गाँव पहुंचकर काम निबटाने में रात के ८.०० बज गए.......वापसी का कोई साधन भी नजर नहीं आ रहा था.........अब तक जो जगह मन को भा रहा था, वो मन को कचोटने लगा......पुनपुन के नाम की हंसी अब चिंता में बदलने लगी.......ऊपर से अमावस की रात!.....आधे घंटे तक कोई साधन न मिलने पर मै एकदम घबराने लगा.........क्योकि रात के १०.३० बजे की ट्रेन पटना जाने वाली आखिरी ट्रेन थी!...... अब तो धड़कने बढ़ने लगी थी!..........वहा से गुजरते एक बुजुर्ग से मैंने पुछा तो पता चला की ६ बजे के बाद सारे साधन बंद हो जाते है,....और हो भी क्यों न?.......बिहार जो ठहरा!....मैंने उन्हें अपनी समस्या बताई.......उन्होंने बताया की वे स्टेशन की और ही जा रहे है अपने खेत की ओर, और मुझे स्टेशन तक छोड़ने का प्रस्ताव दिया!.......सर पूरी तरह घूम गया!....उतनी दूर पैदल?.......लेकिन और कोई चारा भी नहीं था!........बिहार में ऐसे किसी आदमी पर भरोसा करना भी उचित नहीं माना जाता, लेकिन मेरे लिए करो या मरो वाली स्तिथि पैदा हो गयी थी!.........राम का नाम लेकर मै उनके साथ चुपचाप चल दिया!........उनके हाथ में टोर्च थी!.............और मुंह में कभी न रुकने वाली जुबान!..........रास्ते भर पतानही क्या- क्या भोजपुरी में बकते जा रहे थे!.......मै बस उनकी हाँ में हाँ मिलाये जा रहा था!
रात भयानक रूप ले चुकी थी.....चारो ओर गहन अंधकार, झींगुरों की आवाजें, सियारों के रोने की आवाजें ............उफ़!.......आज भी दिल काँप उठता है मेरा!......उस आदमी की बक बक से थोड़ी सामान्यता बनी हुयी थी,.......पर दिल बैठा जा रहा था की कही ट्रेन मिस न हो जाये!..........कुछ ही देर में हमें कुछ आधे किलोमीटर दूर से आ रही रौशनी दिखी!...बुजुर्ग ने बताया की हम स्टेशन पहुँचने वाले है!...........मैंने रहत की सांस ली!........स्टेशन से थोड़ी दूरी बचने पर हमें एक ट्रेन की आवाज सुनाई दी!........मैं समझ गया की ये आखिरी ट्रेन थी......मेरा दिल एकदम-से बैठने लगा!..........हम दोनों स्टेशन की ओर भागे!..........कुछ ही देर में मै स्टेशन पहुंचा तो सही लेकिन ट्रेन स्टार्ट होकर स्पीड पकड़ चुकी थी!........और जब तक मै भागा ट्रेन प्लेटफोर्म छोड़ चुकी थी!........मै प्लेटफोर्म की आखिरी लाइट के खम्बे को पकड़ कर जमीन पर घुटनों के बल बैठ गया!......थकान से बुरी तरह से हांफ रहा था मै!......तकरीबन दो मिनट तक मै यूं ही बैठा हांफता रहा!........फिर खम्बे के सहारे उठा, और धीरे- धीरे एक बेंच पर हांफता हुआ बैठ गया!..........तभी अचानक मुझे उस बुजुर्ग का ख्याल आया, मै अचानक ही उठा और चारो ओर घूम कर देखा!........वो कही नहीं दिखा......मै घबराया पर उसे ढूंढना बेकार ही समझा!..........और महसूस किया की अब मेरे पास और कोई नहीं है!........जी हाँ!.......अमावस की रात, देवताओ का भी दिल दहलाने वाली भयानक रात,......चारो ओर अनगिनत झींगुरों की आवाजें,....सैकड़ो सियारों के रोने की आवाजे........और मै बिहार के उस स्टेशन पर अकेला!.......बिलकुल अकेला!........उजाला था तो बस उस स्टेशन के सीमा के अन्दर ही!........मै बुरी तरह हांफता हुआ वापस बेंच पर बैठ गया!......और वापस एक नजर प्लेटफोर्म की उस बोर्ड पर नजर डाली, जिस पर लिखा था ''पुनपुन''..........कुछ घंटो पहले जिस बोर्ड मै हंस कर गया था, वही अब मुझे भयानक सा दिखाई दे रहा था!.....और उसका अट्टाहस मुझे अन्दर तक झिंझोड़ रहा था!.......अब कोई चारा नहीं बचा था उस स्टेशन पर रात बिताने के अलावा!........थक हार कर मैंने अपना बैग सिरहाने रखकर राम का नाम लेकर आँखे बंद कर ली और कसम खायी की जिन्दा बचा तो जीवन में किसी का मजाक तो कभी नहीं उड़ाउंगा!.......और मै थकान की वजह से नीद की आगोश में समां गया!..........लेकिन ये रात मुझे इतनी आसानी से नहीं बक्शने वाली थी!.........रात को तकरीबन २, २.३० बजे एक अजीबो-गरीब आवाज ने मेरी रूह तक को हिला दिया!......मै एकदम घबरा कर उठ बैठा!......आवाज की ओर देखा तो एक भयानक आकृति स्टेशन के आखिरी लाइट के नीचे बैठ कर अजीबो-गरीब हरकते कर रहा था,.......और पतानहीं क्या क्या बोल रहा था!.........मेरा बचा-कूचा साहस भी जवाब देने लगा था.............अचानक लगा की ये पुनपुन ही होगा!......अब ये मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगा!.........मैंने एकदम से आँखें बंद की और बेंच पर बैठ कर हनुमान चालीसा पढने लगा........लेकिन दुर्भाग्य!........मुझे पूरा हनुमान चालीसा भी नहीं याद था!..........डरते- डरते मैंने आँखें खोली और पलटा, तो उम्मीद की एक किरण नजर आई!.........मैंने देखा की पुराने स्टेशन के अन्दर बत्तियां जल रही थी और पंखा भी चल रहा था!.........मतलब स्टेशन- मास्टर अन्दर होगा!.......बिना एक भी सेकंड की देरी किये मै अन्दर गया और स्टेशन मास्टर को जगा कर पूरी स्थिति से अवगत कराया!.....उन्होंने मुझे वही अन्दर सो जाने को कहा!........तब जान में जान आई! मै चुपचाप सो गया!..........
और आँख खुली तो वो भयानक रात अपनी ड्यूटी पूरी कर वापस जा चुकी थी!.........मैने बाहर निकल कर मुह धोया,....और ढाबे पर चाय-नाश्ता किया!......ढाबे वाले ने मुझे दुबारा देखकर आश्चर्य किया, तो मैंने उसे पूरी घटना बताया!........उसे बहुत हैरत हुयी!........उसने बताया की ये वो भयानक जगह है जहाँ जाने कितने मर्डर हुए है!.............और वो पागल भी एक खुनी था जो अपना मानसिक संतुलन खोकर पागल हो चूका था!.........स्टेशन ही उसका घर था!.........उस ढाबे वाले ने मेरे साहस की प्रशंसा करते हुए कहा की कल रात यहाँ कोई भयानक घटना भी घट सकती थी......लेकिन आप तो अयोध्यावासी है.........आप पर तो राम की कृपा है!.........दरअसल पहली मुलाकात में मैंने उसे अपना परिचय दिया था!..........खैर!........वो एक भयानक रात तो बीत गई!............कुछ देर बाद मै अगली पेसेंजर में था!........एक होर्न के साथ ही ट्रेन स्टेशन छोड़ने लगी!........मैंने खिड़की से पीछे जाते हुए उस बोर्ड को फिर से देखा, जिस पर लिखा था-'पुनपुन'..........पर इस बार मै नहीं हंस पाया!!!!!!!!!
दोस्तों!......तब से लेकर आज तक मैंने इस घटना का जिक्र पहली बार अपने ब्लॉग और फेसबुक पर किया है ........उम्मीद करता हूँ की आप इस पर भरोसा करेंगे!
आपके साहस, लग्न और निष्ठा की सराहना करनी पड़ेगी विनोद जी!
ReplyDeleteye to aapka badappan hai, shastri ji!..........
ReplyDeleteजी!........आपका अति आभार!.............
ReplyDeleteजी!........आपका अति आभार!.............
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteलगे रहो जमे रहो !
धन्यवाद!.......सुशील जी!!!!!!!!!!!!!
Deleteफैजाबादी होकर के तुम डर जाते हो राम जी ।
ReplyDeleteकिडनैपिंग मर्डर कामन था, जीवन रहा हराम जी ।
हनुमत का ही नाम जापकर, कितने बरस यहाँ काटे-
हंसी उड़ाना नहीं किसी की, यह सच्चा पैगाम जी ।।
जी!........डर तो सिर्फ बिहार के नाम का था,........फिर भी प्रभु राम के कृपा का पूरा भरोसा था!............फ़िलहाल किसी का मजाक न उडाने का सबक तो सीख ही लिया था!
ReplyDelete28 varshon se hun yahan-
Deletedhanbad men
aabhaar
आप की चर्चा यहाँ भी है-
ReplyDeletehttp://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/08/blog-post_3630.html
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