कभी मेरी तन्हाई को जिसने है तोडा,
कभी मेरे मन को है जिसने टटोला!
कभी शाम बनकर जो ख्वाबों में आये,
कभी चाँद बनकर है जिसने लुभाया!
जिन्दगी की हकीकत या चाहे मेरा वहम हो,
तुम ही तो मेरा प्रथम प्रेम हो!!!!!!!!!!!!!!
ये गुमनाम राते, ये तनहाइयाँ,
वो पिछली बातें, वो रूसवाइयां!
कभी हंस रहा हूँ, कभी आँख नम है,
कभी यादों की है वो परछाइयां!
खुली आँख से भी न कुछ भी दिखे,
और न ही रूकती है, अंगड़ाइयां!
न आये समझ में, न जाये जिगर से,.....उफ़!!!!!!!!
न जाने मेरी तुम कौन हो?
तुम ही तो मेरा प्रथम प्रेम हो!!!!!!!!!!!
मेरे जिस्मो-जाँ में, जमीं- आसमां में,
दिल की धाराओं पर बस अब तेरी किश्तियाँ!
बिन पाए गर तुमको न जी पा रहा,
डर है पा के न मर जाऊं मै!
फिर भी पुकारे ये दिल बार-बार,....आ जाओ!....
तुम बिन न जाए जिया!.......
मेरे हर पल में, मेरे आजकल में,
तुम्ही हो, तुम्ही हो, तुम्ही और तुम हो!
तुम ही तो मेरा प्रथम प्रेम हो!!!!!!!!!!!!!!!!
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना..
बधाई..
अनु
बहुत भावप्रणव रचना!
ReplyDeleteWho is she....
ReplyDeletekalpana!!!!!!!!!!!!!!
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteप्रेमभाव में डूबी
मनभावन रचना...
:-)