.....शायद दोपहर के १२.३० बजे का समय था. मै अपने घर के सबसे ऊपर वाले छत पर फर्श पर पीठ के बल लेटा एक रहस्यमयी उपन्यास पढ़ रहा था......अआहः .....ऐसे रहस्यमयी किताबे पढना मेरे जीवन के सबसे अच्छे पल होते है........छत के ऊपर गहरा नीला, विस्तृत आसमान, बर्फ की तरह सफ़ेद तैरते बादल और चीटियों से दिखने वाले कुछ परिंदे. .......कुछ सनसनीखेज तथ्यों को पढने के बाद उसे गहराई से समझने के लिए मै किताब सीने पर रख कर
आसमान को निहारने लगता और दिमाग में घूम रहे उपन्यास के सारे चलचित्र मुझे आसमान में सिनेमा की तरह दिखाई देते....और मै आगे की कहानी पढने से पहले खुद ही उस रहस्य को सुलझाने की कोशिश करने लगता.....
''.........बेटा!......नीचे आकर खाना खा लो!''........
टीवी में चल रहे मूवी या सीरियल में अचानक आये ब्रेक की तरह ये आवाज भी मुझे रोज इसी तरह डिस्टर्ब करती थी......लेकिन ये आवाज मेरी परम पूजनीय माता श्री का था,....तो जाना तो था ही.
किताब वही छोड़ कर मै नीचे खाना खाने चला गया....खाना खाते हुए भी दिमाग रहस्यों में ही उलझा था.....खाना खाते समय रहस्यों को सुलझाना मुझे खाने में अचार की तरह लगता है....और यूही मै कह देता-' आज तो मजा आ गया.'.....और माँ खुश हो जाती.....खाना खाकर मै वापस अपनी पोजीशन पर आकर परिकल्पना की दुनिया में खो गया.
मौसम भी खुला हुआ था. हलकी सी धुप ने चारो ओर की हरियाली को बहुत खुबसूरत बना दिया था....मेरे घर के थोडा आगे तकरीबन सात या आठ किलोमीटर के रेंज में एक बड़ा और खुला मैदानी भाग है,....जिसमे कई गाव वालो के खेत, एक बड़ा तालाब और कुछ बड़े सरकारी जमीन के हिस्से है.....वो पूरा हरा मैदान मेरे घर के छत से एक बेहद खूबसूरत दृश्य का निर्माण करती है.....मेरे घर आने वाला हर मेहमान इस दृश्य की तारीफ करता है........खैर!......मै तो इस सजीव दुनिया से दूर कही एक काल्पनिक दुनिया में था....पूरी तरह उलझा हुआ....
अचानक एक भीषण कान के परदे फाड़ देने वाले गडगडाहट की आवाज ने मुझे परिकल्पना की दुनिया से हकीकत के धरातल पर लाकर पटक दिया. दिमाग शून्य हो गया और धड़कने दो गुना तेज हो गयी.......एक अजीब सा विमान आसमान में पूरब की ओर से ...सीधा मेरे छत की ओर उड़ता हुआ आया .....एक पल को लगा की मेरा घर तो गया!.......लेकिन मेरे सिर के लगभग १० फुट ऊपर से वह विमान वापस पश्चिम की ओर ऊपर उड़ गया.......फिर वह एकदम से पलटकर गोल- गोल घुमते हुए सीधा उस बड़े मैदानी भाग में जा गिरा........और अगले ही पल ब्लास्ट हो गया........उस भयंकर आवाज ने पूरे गाव को दहशत में डाल दिया.......पूरा गाव देखते ही देखते घटनास्थल पर जमा होने लगा.......पर जो मैंने देखा था वो किसी और ने नहीं देखा था.
विमान जब मेरे छत से होकर गुजरा था तो उसमे से एक बैग मेरे छत पर आ गिरा...........मै स्तब्ध सा कुछ देर देखता रहा. कानो में अभी तक धमाके की आवाज गूँज रही थी.....मै धीरे से आगे बढ़ा और बैग खोलकर देखा तो मेरी आँखे हैरत से फ़ैल गयी ....और उससे भी ज्यादा हैरानी उस बैग के उपरी पॉकेट से मिले एक कागज से हुई, जिसमे लिखा था -'' इस बैग में एक बहुत बड़ा राज छिपा हुआ है....मेरे पास इसे बताने का वक़्त तो नहीं है पर इस राज से देश का बहुत बड़ा खतरा जुड़ा हुआ है. ........ये बैग जिसे भी मिले उससे मेरा अनुरोध है की देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते किसी ऐसे इन्सान तक पंहुचा दे जो इस रहस्य को सुलझा सके और देश की रक्षा कर सके..........जय हिंद!.....''
मै पूरी तरह शोक्ड हो चूका था. दिमाग में कई तरह के सवाल घूमने लगे. एक बड़ा तूफ़ान मेरे दिमाग को पूरी तरह झिंझोड़ गया..........मैने चुपचाप बैग उठाया और अपने आलमारी में रख दिया .....और आँख बंद करके बिस्तर पर लेट गया.....और नींद के आगोश में चला गया..........
........जब मेरी आँख खुली तो मै चौंक गया........जी हाँ!......मै सूरत में था और सुबह के ५ बज रहे थे........तो फिर गाँव ?....ओह !....तो मैंने एक सपना देखा!...उफ़ , अजीबो-गरीब सपना!..........
दोस्तों!......कहते है की सुबह उठते ही लोग सपने भूल जाते है.....पर मेरे साथ ऐसा नहीं होता!........मुझे सपने याद रहते है!.......और ऐसे सपने मुझे अक्सर ही आते रहते है!.........शायद इन्ही सपनों से मुझे इस तरह की कहानिया लिखने की प्रेरणा मिलती है या फिर मेरे राईटर होने की वजह से मुझे ऐसे सपने आते है!
खैर!.....मैंने ठान लिया है की मै इस अधूरे सपने को पूरा करूंगा!.........एक रहस्यमयी कहानी के रूप में!...........आप बताइए आपको कैसा लगा?..............
''.........बेटा!......नीचे आकर खाना खा लो!''........
टीवी में चल रहे मूवी या सीरियल में अचानक आये ब्रेक की तरह ये आवाज भी मुझे रोज इसी तरह डिस्टर्ब करती थी......लेकिन ये आवाज मेरी परम पूजनीय माता श्री का था,....तो जाना तो था ही.
किताब वही छोड़ कर मै नीचे खाना खाने चला गया....खाना खाते हुए भी दिमाग रहस्यों में ही उलझा था.....खाना खाते समय रहस्यों को सुलझाना मुझे खाने में अचार की तरह लगता है....और यूही मै कह देता-' आज तो मजा आ गया.'.....और माँ खुश हो जाती.....खाना खाकर मै वापस अपनी पोजीशन पर आकर परिकल्पना की दुनिया में खो गया.
मौसम भी खुला हुआ था. हलकी सी धुप ने चारो ओर की हरियाली को बहुत खुबसूरत बना दिया था....मेरे घर के थोडा आगे तकरीबन सात या आठ किलोमीटर के रेंज में एक बड़ा और खुला मैदानी भाग है,....जिसमे कई गाव वालो के खेत, एक बड़ा तालाब और कुछ बड़े सरकारी जमीन के हिस्से है.....वो पूरा हरा मैदान मेरे घर के छत से एक बेहद खूबसूरत दृश्य का निर्माण करती है.....मेरे घर आने वाला हर मेहमान इस दृश्य की तारीफ करता है........खैर!......मै तो इस सजीव दुनिया से दूर कही एक काल्पनिक दुनिया में था....पूरी तरह उलझा हुआ....
अचानक एक भीषण कान के परदे फाड़ देने वाले गडगडाहट की आवाज ने मुझे परिकल्पना की दुनिया से हकीकत के धरातल पर लाकर पटक दिया. दिमाग शून्य हो गया और धड़कने दो गुना तेज हो गयी.......एक अजीब सा विमान आसमान में पूरब की ओर से ...सीधा मेरे छत की ओर उड़ता हुआ आया .....एक पल को लगा की मेरा घर तो गया!.......लेकिन मेरे सिर के लगभग १० फुट ऊपर से वह विमान वापस पश्चिम की ओर ऊपर उड़ गया.......फिर वह एकदम से पलटकर गोल- गोल घुमते हुए सीधा उस बड़े मैदानी भाग में जा गिरा........और अगले ही पल ब्लास्ट हो गया........उस भयंकर आवाज ने पूरे गाव को दहशत में डाल दिया.......पूरा गाव देखते ही देखते घटनास्थल पर जमा होने लगा.......पर जो मैंने देखा था वो किसी और ने नहीं देखा था.
विमान जब मेरे छत से होकर गुजरा था तो उसमे से एक बैग मेरे छत पर आ गिरा...........मै स्तब्ध सा कुछ देर देखता रहा. कानो में अभी तक धमाके की आवाज गूँज रही थी.....मै धीरे से आगे बढ़ा और बैग खोलकर देखा तो मेरी आँखे हैरत से फ़ैल गयी ....और उससे भी ज्यादा हैरानी उस बैग के उपरी पॉकेट से मिले एक कागज से हुई, जिसमे लिखा था -'' इस बैग में एक बहुत बड़ा राज छिपा हुआ है....मेरे पास इसे बताने का वक़्त तो नहीं है पर इस राज से देश का बहुत बड़ा खतरा जुड़ा हुआ है. ........ये बैग जिसे भी मिले उससे मेरा अनुरोध है की देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते किसी ऐसे इन्सान तक पंहुचा दे जो इस रहस्य को सुलझा सके और देश की रक्षा कर सके..........जय हिंद!.....''
मै पूरी तरह शोक्ड हो चूका था. दिमाग में कई तरह के सवाल घूमने लगे. एक बड़ा तूफ़ान मेरे दिमाग को पूरी तरह झिंझोड़ गया..........मैने चुपचाप बैग उठाया और अपने आलमारी में रख दिया .....और आँख बंद करके बिस्तर पर लेट गया.....और नींद के आगोश में चला गया..........
........जब मेरी आँख खुली तो मै चौंक गया........जी हाँ!......मै सूरत में था और सुबह के ५ बज रहे थे........तो फिर गाँव ?....ओह !....तो मैंने एक सपना देखा!...उफ़ , अजीबो-गरीब सपना!..........
दोस्तों!......कहते है की सुबह उठते ही लोग सपने भूल जाते है.....पर मेरे साथ ऐसा नहीं होता!........मुझे सपने याद रहते है!.......और ऐसे सपने मुझे अक्सर ही आते रहते है!.........शायद इन्ही सपनों से मुझे इस तरह की कहानिया लिखने की प्रेरणा मिलती है या फिर मेरे राईटर होने की वजह से मुझे ऐसे सपने आते है!
खैर!.....मैंने ठान लिया है की मै इस अधूरे सपने को पूरा करूंगा!.........एक रहस्यमयी कहानी के रूप में!...........आप बताइए आपको कैसा लगा?..............
अच्छा रहा यह सपना!
ReplyDeleteलिखते रहिए!