कृपया नापतोल.कॉम से कोई सामान न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....
--
मान्यवर,
मैंने आपको चेतावनी दी थी कि यदि आप 15 दिनों के भीतर मेरा प्रोड्कट नहीं बदलेंगे तो मैं
अपने सभी 21 ब्लॉग्स पर आपका पर्दाफास करूँगा।
यह अवधि 26 जनवरी 2013 को समाप्त हो रही है।
अतः 27 जनवरी को मैं अपने सभी ब्लॉगों और अपनी फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब, ऑरकुट पर
आपके घटिया समान बेचने
और भारत की भोली-भाली जनता को ठगने का विज्ञापन प्रकाशित करूँगा।
जिसके जिम्मेदार आप स्वयं होंगे।
इत्तला जानें।

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Wednesday, 31 October 2012

मेरा पैगाम

          नमस्कार दोस्तों!......कहते है, ''जान है तो जहान है!''......शायद सच ही है!...जिन्दगी के कुछ सपने है, कुछ लक्ष्य है, जिन्हें हासिल करने के लिए निरंतर लम्बे अरसे से गाँव- घर और अपनों से दूर यहाँ शहर में संघर्षरत हूँ! इस दरमियान मैंने क्या हासिल किया और क्या खोया, ये आई और गई वाली बात हो गई!.....क्योकि संघर्ष तो तब तक ख़तम नहीं होता, जब तक हम खुद हार नहीं मान लेते!.....कम से कम मै उन लोगो में से तो नहीं हूँ!.....संघर्ष तो तब तक कायम रहेगा, ''जब तक है जान!''.........
        बस!....इस लम्बे अरसे में कई बार बीमार होने के बाद, शारीरिक रूप से थोडा कमजोर हो गया हूँ!....उसी की भरपाई के लिए कुछ दिनों के लिए गाँव जा रहा हूँ!....माँ के हाथ की रोटी खाने, गाँव की शुद्ध हवा लेने!.......तब तक फेसबुक और ब्लॉग से थोडा दूर ही रहूँगा!........और जल्द ही वापस लौटूंगा, अपने अभियान पर!......उम्मीद करता हूँ की आप सभी की दुआए साथ होंगी!........
                                                                                                           आपका दोस्त 
                                                                                                            विनोद मौर्य 

Tuesday, 16 October 2012

सिर्फ तुम


उन तनहा ढलती शामो को, 
तड़प कर गुजरे, उन यादो को,
जब ढूंढता था मै, हर चेहरे में तुम्हे,
बस दिखती थी तुम ही तुम मुझे,
वो तुम्हारे सादगी के सदके,
छलकते आँखों के पैमाने,.और वो झूठी मुस्कान,
आज तुम यूं ही छोड़ उन्हें, क्यों मेरी दुनिया से जाते हो?
रुक जाओ!....न जाओ!....वापस आ जाओ!......
बस इतना ही कह दो की हम तुमसे नफरत करते है!
जी लेंगे हम जिन्दगी, तुम्हारे इन लफ्जो के सहारे,
पी लेंगे हम आंसुओ को, तुम्हारे दीदार के सहारे!

........पर भला तुम क्यों रुकोगी?
तुम तो ख्वाब हो, जो बस टूटता ही है!
दिल चाहे खरा सोना ही क्यों न हो, मुकद्दर रूठता ही है!
या फिर हो हवा का झोका,....जो कही रुकता नहीं,
या की हो उफनता कोई सैलाब,......जो 
वीरान कर जाएगी मेरी दुनिया, अपने जाने के बाद!

सोचता हूँ की मै कौन हूँ?..क्यों तड़पता हूँ तुम्हारे लिए?
क्यों चाहता हूँ तुमको?...क्यों रोता हूँ तुम्हारे लिए?
क्या हक़ है मेरा की मै ये भी कहूँ....की कह दो मुझसे की हमें तुमसे नफरत है!
......तुम मेरी दुश्मन तो नहीं!......पर.... प्यार भी तो नहीं!
.....सिर्फ!......सिर्फ....एक लम्हा हो!......अतीत हो!....मेरी कल्पना हो!
मेरा ख्वाब हो!........पर एक बात याद रखना!...
गर कभी महसूस हो, की जरूरत है मेरी,........
तो बेझिझक आना!......और मुझे जगाना!....उन यादो की गहरी नींद से!...
की जिनमे सिर्फ तुम हो!...सिर्फ तुम हो!....सिर्फ तुम हो!!!!!!!!!!!
खुले होंगे सारे रस्ते तुम्हारे लिए,
क्योकि मेरे दिल के घर में दरवाजे ही नहीं है,
जो बंद हो जाये......वो भी भला ....तुम्हारे लिए!.........

Friday, 31 August 2012

मै लिखता हूँ

             प्यारे बंधुओ!........धरती पर शायद ही कोई ऐसा इन्सान होगा,......जिसे दुःख न हो!.....जिसकी जिन्दगी में परेशानिया न हो!......तकलीफें न हो!......लेकिन इंसान को धरती का सबसे बुद्धिजीवी प्राणी यूं ही नहीं कहा गया है!......इंसान पानी की तरह बहते हुए अपने आगे बढ़ने का रास्ता ढूंढ ही लेता है! हजारो गम और समस्याओ पर हावी होने वाला कोई एक तरीका तो इंसान ढूंढ ही लेता है,.....जिसमे खोकर वो अपने सारे गम और मुश्किलें भूल जाता है!.....उसकी सैलाब जैसी जिन्दगी में एक संतोषजनक ठहराव आ जाता है!.................मेरी सागर जैसी जिन्दगी की नौका में भी एक ऐसा पतवार है, जो मुझे अपने हर गम से दूर ले जाता है,......मुश्किलों से लड़ने के लिए एक नयी उर्जा देता है!.........और वो पतवार है- 'मेरी लेखन कला'!........जिन्दगी के हर जंग में मेरे रथ का सारथी!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
           अब जब मै अपने लेखन कला की बात कर ही रहा हूँ, तो ये कहना किसी अतिशयोक्ति से कम नहीं होगा, लेकिन फिर भी कहूँगा की मैंने लिखना तब शुरू किया जब आमतौर पे बच्चे सही ढंग से शब्दों को लिखना सीख रहे होते है!.........और ये शत- प्रतिशत सत्य है!........आइये!....मै आपको अपने जिन्दगी के उन मासूम लम्हों में ले जाता हूँ,........जहाँ मैंने दूसरे बच्चो की तुलना में खेल-कूद, हंसी- ठिठोली और बचपन की शरारतो की जगह कलम को अपना हमराज बनाया!
       बात उन दिनों की है जब मै 'दूसरी- कक्षा' में पढता था!.......उन दिनों आज की तरह अनगिनत मनोरंजन के साधन नहीं हुआ करते थे. ले- दे कर वही दूरदर्शन के कई सारे धारावाहिक!......और या फिर स्कूल का मैदान!....रविवार को छुट्टी का दिन हर बच्चे के लिए खुशियों का सौगात लाता था!.....सुबह से ही टीवी पर लोकप्रिय कार्यक्रम  'रंगोली', 'श्रीकृष्णा', 'कॅप्टन व्योम', 'विराट', 'बच के रहना रे', साका- लाका बूम- बूम', 'शक्तिमान' और 'आर्यमान' जैसे धारावाहिक से पूरा रविवार यादगार बन जाता था!.....पर गाँव तो आखिर गाँव ही था!...बिजली की समस्या की वजह से कभी- कभी हम इस सुख से भी वंचित रह जाते थे!........लेकिन उन दिनों एक और ऐसी चीज थी, जो न सिर्फ बच्चो, बल्कि बड़ो को भी खूब लुभाती थी!......और वो चीज थी- 'कॉमिक्स'!
           जी हाँ!........कॉमिक्स ही वो चीज थी, जिसने मेरे अन्दर के लेखक को जगाया था!....उन दिनों कॉमिक्स का प्रचलन सर चढ़ कर बोलता था!.....किसी और का तो पता नहीं, पर मै तो कॉमिक्स का दीवाना था!....लेकिन बचपन के उन दिनों में पढाई के दबाव में घर के बड़े इसकी इजाजत नहीं दिया करते थे!....कभी- कभी मामा जी के घर जाने पर कई कॉमिक्स पढने को मिल जाता था!..और वो लम्हा जिन्दगी का सबसे बेहतरीन लम्हा बन जाता था!......खैर!.....मै स्कूल के दिनों की बात कर रहा था!....कुछ एकाध दोस्तों को छोड़कर, मेरे बिलकुल अलग ही स्वाभाव और सादेपन के कारण मेरी सहपाठियों से थोड़ी कम बनती थी!.......उन्ही सहपाठियों में से एक लड़का स्कूल में हमेशा कॉमिक्स लाता था!......उसके घर में कॉमिक्स की भरमार थी!......वो अपने दोस्तों की गुट बनाकर खाली समय में कॉमिक्स पढता था ......और मुझे ललचाया करता था!....लालसावश मै उनके पास जाता तो बचपने में आकर वो मुझे भगा देते थे!......ऐसा लगभग रोज ही होता था!.......एक दिन जब रोज की तरह उन लडको ने मुझे तिरस्कृत किया तो मैंने भी आवेश में आकर यूं ही कह डाला- ''मुझे जरूरत नहीं है तुम्हारे इस कॉमिक्स की!......मै इससे भी अच्छा कहानी लिख सकता हूँ!''..........उन लडको ने मेरा खूब मजाक उड़ाया!......लेकिन आवेश में कही हुई वो बात मेरी नन्ही-सी जान पर गहरा असर छोड़ गई!.....मेरे मन में लिखने की जिज्ञासा जाग गई!....उन दिनों पढ़े हुए कॉमिक्स, टीवी पर आ रहे लोकप्रिय रहस्यमयी धारावाहिकों और उस उम्र में मेरे ज्ञान के हिसाब से मैंने कुछ ही दिनों में 'शमशान का भूत', 'छिपा कमरा', 'सावधान!..मौत आ रही है', 'कलाई पट्टी और डकूरा की मौत', 'भूतिया हवेली', 'चार आत्माए', 'मुह्हल्ले के चोर' और दर्जनों रहस्यमयी कहानिया लिख डाली!......इनकी चर्चाये जब दोस्तों में होने लगी तो मै फेमश होने लगा!.....मजाक उड़ने वाले दोस्त, मेरे करीब आने लगे और मै सबका चहेता बन गया!.......इन कहानियो से मिली बचपन में उस सम्मान ने मुझे आगे और लिखने की प्रेरणा दी!.......उम्र के साथ- साथ कक्षाए भी बढती रही और मेरा ज्ञान भी बढ़ता रहा!.....और धीरे- धीरे हिंदी साहित्य में मेरी रूचि भी बढती गयी!.......और तब मैंने कुछ साहित्यिक कहानियो का भी संग्रह बना डाला, जिसे मैंने 'कथा- वृक्ष' नाम दिया!.....इसमें 'सपना या सच्चाई', 'टिन का बर्तन', 'अईवागा', 'रात्रि-सम्मलेन', 'सिक्के की आत्मकथा', 'सोने की चिड़िया', 'बसंत की वो एक रात' और कुछ अन्य साहित्यिक कहानिया भी थी!......इसके अलावा रहस्यों से मेरे लगाव को ध्यान में रखते हुए मैंने 'पिटारा' नाम का एक और संग्रह बनाया!....जिसमे मैंने जाने कितने ही रोमांचक कहानियाँ लिखी!....
          सातवी- आठवी कक्षा तक पहुचने पर मेरी बड़ी बहन ने मुझे उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित किया!.....उन्होंने मुझे उपन्यास के बारे में कई जानकरिया भी दी!....और तब मैंने अगले तीन- चार सालो में 'कंटक- मणि' और 'मिशन- ब्लास्ट' नाम की दो सनसनीखेज उपन्यास लिख डाली!....और तब तक मै अपने घर वालो, दोस्तों, स्कूल, गाँव, जान- पहचान वालो और रिश्तेदारों में लेखक के रूप में मशहूर हो गया!.........बारहवी पास करने के बाद मार्केटिंग मैनेजमेंट की तैयारी के लिए मै पटना जा रहा था!....उस यात्रा में मेरा एक ब्रीफकेस चोरी हो गया!....उस ब्रीफकेस में मेरे कपड़ो, कुछ जरूरी चीजो के अलावा मेरी अब तक की सारी रचनाये भी खो गयी!.....उसे ढूंढवाने की मैंने बहुत कोशिश की पर वो नहीं मिल सका!............
           जिन्दगी की तेज रफ़्तार!.....और देखते ही देखते मै आज अपनी उसी लेखन- कला को अपनी पहचान बना चूका हूँ!.......लेकिन अभी बहुत छोटे स्तर पर!......मुझे अपनी कहानियो के बल पर फिल्म- उद्योग में एक नया मोड़ लाना है!......जिसकी मै दिन- रात कोशिश में लगा हूँ!.........
           अपने बचपन के उन लम्हों से लेकर आज तक मैंने जाने क्या नहीं खोया!.......लेकिन मुझे फक्र है की ''मै लिखता हूँ''..........और जिन्दगी जब तक साथ देगी लिखता रहूँगा!........और तब तक ही चलता रहेगा ........''मेरा संघर्ष''........................

Thursday, 23 August 2012

हार मत मानो

जैसा की जीवन में कंही- कभी, 
कुछ घटनाएं घट जाती है.
अपने ऊपर बादल बनकर,
कुछ विपदाएं घिर आती है.

पथ जीवन की अकस्मात ही,
कठिन चढ़ाई बन जाती है.
जब हर अगले कल की चिंता,
हमको दिन रात सताती है.

असफलता पे असफलता ही,
जब हमको मिलती जाती है.
अपनी ही तकदीर हमारा, 
जब खिल्ली खूब उड़ाती है.

चलती हुई हवाएं भी अपना ,
जब रुख मोड़ने लगते है.
अपनों से बढ़कर अपने भी,
जब साथ छोड़ने लगते है.

हर स्वप्न बिखरने लगते है,
हर आस टूटने लगती है.
फिर साँसों के साथ हमारी,
आह छूटने लगती है.

जब खर्चे बढ़ने लगे अधिक,
और आय बहुत हो जाए कम.
तब थोडा- सा रूक जाना, 
पर हार कभी न मनो तुम.

खोकर सब कुछ खुद पर यूं ही,
बैठ कभी न रोना तुम.
फिर सब कुछ वापस पाने की,
उम्मीद कभी न खोना तुम.

उम्मीदे ही तो जीवन में,
फिर दृढ-विश्वास जगाती है.
फिर से स्थापित होने की,
हिम्मत को पास बुलाती है.

हिम्मत की नैय्या से भंवर भरी,
जब ये नदी पार कर जाओगे.
अपने सपनो के शीशमहल का
नव- निर्माण कर जाओगे....

अच्छे और बुरे मित्रों की,
फिर शक्ल आज पहचानो तुम.
परखना सीख लिया तुमने,
तो!.....हार कभी न मानो तुम!!

Friday, 17 August 2012

बाप और बेटा

आज फिर कुछ ऐसा हुआ, जो सदियों से कुदरत का दस्तूर रहा है,
बेटा खिल कर फूल बन गया और बाप मुरझा कर घूर रहा है!!

जो कल खेल रहा था बचपन की गलियों में, आज वो बन चूका बड़ा है,
और जो डूबा था जिम्मेदारी की जवानी में, वो बुढ़ापा बनकर खड़ा है!!

आज खड़े है दोनों आमने- सामने, ये भूलकर की अब तक कैसे जिए,
बेटा अपनी आँखों में जिज्ञासा, और बाप जुबाँ पर कुछ प्रश्न लिए!!

कुछ देर यूं ही खड़े थे दोनों, एक दुसरे को ताकते हुए,
ख़ामोशी से बोल रहे थे, एक दुसरे के मन में झांकते हुए!!

फिर बाप की गहरी बूढी आँखों ने पुछा- 'बेटा!......इन आँखों से दुनिया और दुनियादारी खूब देखी!
अब बारी तेरी है, खुद देखने की और मुझे भी दिखाने की!....बोल!...क्या तू दिखाएगा?'
बेटा खामोश रहा....................

फिर बाप के खामोश कांपते होठो ने पुछा- 'बेटा!...अब इन होठो की क्षमता घट चुकी है!
अब बारी तेरी है, अपने लिए बोलने की और मेरे लिए भी!....बोल!...क्या तू बोलेगा?'
बेटा खामोश रहा....................

फिर बाप के झुके हुए कंधे ने पुछा- 'बेटा!....इन कंधो ने तब तक जिम्मेदारियों का बोझ उठाया, जब तक ये झुक नहीं गए!
पर अब बारी तेरी है, अपना बोझ उठाने की और मेरा भी!.....बोल!....क्या तू उठाएगा?
बेटा खामोश रहा....................

फिर बाप के थरथराते हाथो ने पुछा- 'इन हाथो ने तब तक कर्म किये, जब तक ये कमजोर नहीं हो गए!
पर अब बारी तेरी है, अपने लिए कर्म करने की और मेरे लिए भी!....बोल!...क्या तू करेगा?
बेटा खामोश रहा....................

फिर बाप के लड़खड़ाते कदमो ने पुछा- 'इन कदमो ने तब तक चलना नहीं छोड़ा,जब तक ये थक नहीं गए!
लडखडाये, गिरे, उठे, संभले और फिर चले!
पर अब बारी तेरी है, अपने लिए चलने की और मेरे लिए भी!....बोल!......क्या तू चलेगा?
बेटा खामोश रहा.....................

और अब बाप के स्याह पड़ चुके चेहरे ने पुछा- 'अब तक तू मुझसे उम्मीदे रखता था,पर अब मै थक चूका हूँ!
अब बारी तेरी है!...बोल!....क्या मै तुझसे उम्मीदे रख सकता हूँ, की तू जियेगा मेरे लिए भी, जब तक जिन्दा हूँ?
बेटा खामोश रहा......................

बेटा खामोश रहा!......क्योकि ये हर बेटे के लिए है!.........आपका जवाब क्या है?......ये आप पर निर्भर है!!!!!!!!!

Monday, 13 August 2012

तुम ही तो मेरा प्रथम प्रेम हो


कभी मेरी तन्हाई को जिसने है तोडा,
कभी मेरे मन को है जिसने टटोला!
कभी शाम बनकर जो ख्वाबों में आये,
कभी चाँद बनकर है जिसने लुभाया!
जिन्दगी की हकीकत या चाहे मेरा वहम हो,
तुम ही तो मेरा प्रथम प्रेम हो!!!!!!!!!!!!!!

ये गुमनाम राते, ये तनहाइयाँ,
वो पिछली बातें, वो रूसवाइयां!
कभी हंस रहा हूँ, कभी आँख नम है,
कभी यादों की है वो परछाइयां!
खुली आँख से भी न कुछ भी दिखे,
और न ही रूकती है, अंगड़ाइयां!
न आये समझ में, न जाये जिगर से,.....उफ़!!!!!!!!
न जाने मेरी तुम कौन हो?
तुम ही तो मेरा प्रथम प्रेम हो!!!!!!!!!!!

मेरे जिस्मो-जाँ में, जमीं- आसमां में,
दिल की धाराओं पर बस अब तेरी किश्तियाँ!
बिन पाए गर तुमको न जी पा रहा,
डर है पा के न मर जाऊं मै!
फिर भी पुकारे ये दिल बार-बार,....आ जाओ!....
तुम बिन न जाए जिया!.......
मेरे हर पल में, मेरे आजकल में,
तुम्ही हो, तुम्ही हो, तुम्ही और तुम हो!
तुम ही तो मेरा प्रथम प्रेम हो!!!!!!!!!!!!!!!!