जैसा की जीवन में कंही- कभी,
कुछ घटनाएं घट जाती है.
अपने ऊपर बादल बनकर,
कुछ विपदाएं घिर आती है.
पथ जीवन की अकस्मात ही,
कठिन चढ़ाई बन जाती है.
जब हर अगले कल की चिंता,
हमको दिन रात सताती है.
असफलता पे असफलता ही,
जब हमको मिलती जाती है.
अपनी ही तकदीर हमारा,
जब खिल्ली खूब उड़ाती है.
चलती हुई हवाएं भी अपना ,
जब रुख मोड़ने लगते है.
अपनों से बढ़कर अपने भी,
जब साथ छोड़ने लगते है.
हर स्वप्न बिखरने लगते है,
हर आस टूटने लगती है.
फिर साँसों के साथ हमारी,
आह छूटने लगती है.
जब खर्चे बढ़ने लगे अधिक,
और आय बहुत हो जाए कम.
तब थोडा- सा रूक जाना,
पर हार कभी न मनो तुम.
खोकर सब कुछ खुद पर यूं ही,
बैठ कभी न रोना तुम.
फिर सब कुछ वापस पाने की,
उम्मीद कभी न खोना तुम.
उम्मीदे ही तो जीवन में,
फिर दृढ-विश्वास जगाती है.
फिर से स्थापित होने की,
हिम्मत को पास बुलाती है.
हिम्मत की नैय्या से भंवर भरी,
जब ये नदी पार कर जाओगे.
अपने सपनो के शीशमहल का
नव- निर्माण कर जाओगे....
अच्छे और बुरे मित्रों की,
फिर शक्ल आज पहचानो तुम.
परखना सीख लिया तुमने,
तो!.....हार कभी न मानो तुम!!
बहुत सुन्दर भावप्रणव प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (25-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteमित्र हमेशा ही अच्छा होता है
बुरा होता है वो मित्र कहाँ होता है!
उम्मीदे ही तो जीवन में,
ReplyDeleteफिर दृढ-विश्वास जगाती है.
फिर से स्थापित होने की,
हिम्मत को पास बुलाती है.
...उम्मीद के सहारे ही तो ज़िंदगी गुज़र पाती है ....बहुत सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति..
अच्छे और बुरे मित्रों की,
ReplyDeleteफिर शक्ल आज पहचानो तुम.
परखना सीख लिया तुमने,
तो!.....हार कभी न मानो तुम!!
एकदम सही बात..
बेहतरीन रचना...
:-)