प्यारे बंधुओ!........धरती पर शायद ही कोई ऐसा इन्सान होगा,......जिसे दुःख न हो!.....जिसकी जिन्दगी में परेशानिया न हो!......तकलीफें न हो!......लेकिन इंसान को धरती का सबसे बुद्धिजीवी प्राणी यूं ही नहीं कहा गया है!......इंसान पानी की तरह बहते हुए अपने आगे बढ़ने का रास्ता ढूंढ ही लेता है! हजारो गम और समस्याओ पर हावी होने वाला कोई एक तरीका तो इंसान ढूंढ ही लेता है,.....जिसमे खोकर वो अपने सारे गम और मुश्किलें भूल जाता है!.....उसकी सैलाब जैसी जिन्दगी में एक संतोषजनक ठहराव आ जाता है!.................मेरी सागर जैसी जिन्दगी की नौका में भी एक ऐसा पतवार है, जो मुझे अपने हर गम से दूर ले जाता है,......मुश्किलों से लड़ने के लिए एक नयी उर्जा देता है!.........और वो पतवार है- 'मेरी लेखन कला'!........जिन्दगी के हर जंग में मेरे रथ का सारथी!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अब जब मै अपने लेखन कला की बात कर ही रहा हूँ, तो ये कहना किसी अतिशयोक्ति से कम नहीं होगा, लेकिन फिर भी कहूँगा की मैंने लिखना तब शुरू किया जब आमतौर पे बच्चे सही ढंग से शब्दों को लिखना सीख रहे होते है!.........और ये शत- प्रतिशत सत्य है!........आइये!....मै आपको अपने जिन्दगी के उन मासूम लम्हों में ले जाता हूँ,........जहाँ मैंने दूसरे बच्चो की तुलना में खेल-कूद, हंसी- ठिठोली और बचपन की शरारतो की जगह कलम को अपना हमराज बनाया!
बात उन दिनों की है जब मै 'दूसरी- कक्षा' में पढता था!.......उन दिनों आज की तरह अनगिनत मनोरंजन के साधन नहीं हुआ करते थे. ले- दे कर वही दूरदर्शन के कई सारे धारावाहिक!......और या फिर स्कूल का मैदान!....रविवार को छुट्टी का दिन हर बच्चे के लिए खुशियों का सौगात लाता था!.....सुबह से ही टीवी पर लोकप्रिय कार्यक्रम 'रंगोली', 'श्रीकृष्णा', 'कॅप्टन व्योम', 'विराट', 'बच के रहना रे', साका- लाका बूम- बूम', 'शक्तिमान' और 'आर्यमान' जैसे धारावाहिक से पूरा रविवार यादगार बन जाता था!.....पर गाँव तो आखिर गाँव ही था!...बिजली की समस्या की वजह से कभी- कभी हम इस सुख से भी वंचित रह जाते थे!........लेकिन उन दिनों एक और ऐसी चीज थी, जो न सिर्फ बच्चो, बल्कि बड़ो को भी खूब लुभाती थी!......और वो चीज थी- 'कॉमिक्स'!
जी हाँ!........कॉमिक्स ही वो चीज थी, जिसने मेरे अन्दर के लेखक को जगाया था!....उन दिनों कॉमिक्स का प्रचलन सर चढ़ कर बोलता था!.....किसी और का तो पता नहीं, पर मै तो कॉमिक्स का दीवाना था!....लेकिन बचपन के उन दिनों में पढाई के दबाव में घर के बड़े इसकी इजाजत नहीं दिया करते थे!....कभी- कभी मामा जी के घर जाने पर कई कॉमिक्स पढने को मिल जाता था!..और वो लम्हा जिन्दगी का सबसे बेहतरीन लम्हा बन जाता था!......खैर!.....मै स्कूल के दिनों की बात कर रहा था!....कुछ एकाध दोस्तों को छोड़कर, मेरे बिलकुल अलग ही स्वाभाव और सादेपन के कारण मेरी सहपाठियों से थोड़ी कम बनती थी!.......उन्ही सहपाठियों में से एक लड़का स्कूल में हमेशा कॉमिक्स लाता था!......उसके घर में कॉमिक्स की भरमार थी!......वो अपने दोस्तों की गुट बनाकर खाली समय में कॉमिक्स पढता था ......और मुझे ललचाया करता था!....लालसावश मै उनके पास जाता तो बचपने में आकर वो मुझे भगा देते थे!......ऐसा लगभग रोज ही होता था!.......एक दिन जब रोज की तरह उन लडको ने मुझे तिरस्कृत किया तो मैंने भी आवेश में आकर यूं ही कह डाला- ''मुझे जरूरत नहीं है तुम्हारे इस कॉमिक्स की!......मै इससे भी अच्छा कहानी लिख सकता हूँ!''..........उन लडको ने मेरा खूब मजाक उड़ाया!......लेकिन आवेश में कही हुई वो बात मेरी नन्ही-सी जान पर गहरा असर छोड़ गई!.....मेरे मन में लिखने की जिज्ञासा जाग गई!....उन दिनों पढ़े हुए कॉमिक्स, टीवी पर आ रहे लोकप्रिय रहस्यमयी धारावाहिकों और उस उम्र में मेरे ज्ञान के हिसाब से मैंने कुछ ही दिनों में 'शमशान का भूत', 'छिपा कमरा', 'सावधान!..मौत आ रही है', 'कलाई पट्टी और डकूरा की मौत', 'भूतिया हवेली', 'चार आत्माए', 'मुह्हल्ले के चोर' और दर्जनों रहस्यमयी कहानिया लिख डाली!......इनकी चर्चाये जब दोस्तों में होने लगी तो मै फेमश होने लगा!.....मजाक उड़ने वाले दोस्त, मेरे करीब आने लगे और मै सबका चहेता बन गया!.......इन कहानियो से मिली बचपन में उस सम्मान ने मुझे आगे और लिखने की प्रेरणा दी!.......उम्र के साथ- साथ कक्षाए भी बढती रही और मेरा ज्ञान भी बढ़ता रहा!.....और धीरे- धीरे हिंदी साहित्य में मेरी रूचि भी बढती गयी!.......और तब मैंने कुछ साहित्यिक कहानियो का भी संग्रह बना डाला, जिसे मैंने 'कथा- वृक्ष' नाम दिया!.....इसमें 'सपना या सच्चाई', 'टिन का बर्तन', 'अईवागा', 'रात्रि-सम्मलेन', 'सिक्के की आत्मकथा', 'सोने की चिड़िया', 'बसंत की वो एक रात' और कुछ अन्य साहित्यिक कहानिया भी थी!......इसके अलावा रहस्यों से मेरे लगाव को ध्यान में रखते हुए मैंने 'पिटारा' नाम का एक और संग्रह बनाया!....जिसमे मैंने जाने कितने ही रोमांचक कहानियाँ लिखी!....
सातवी- आठवी कक्षा तक पहुचने पर मेरी बड़ी बहन ने मुझे उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित किया!.....उन्होंने मुझे उपन्यास के बारे में कई जानकरिया भी दी!....और तब मैंने अगले तीन- चार सालो में 'कंटक- मणि' और 'मिशन- ब्लास्ट' नाम की दो सनसनीखेज उपन्यास लिख डाली!....और तब तक मै अपने घर वालो, दोस्तों, स्कूल, गाँव, जान- पहचान वालो और रिश्तेदारों में लेखक के रूप में मशहूर हो गया!.........बारहवी पास करने के बाद मार्केटिंग मैनेजमेंट की तैयारी के लिए मै पटना जा रहा था!....उस यात्रा में मेरा एक ब्रीफकेस चोरी हो गया!....उस ब्रीफकेस में मेरे कपड़ो, कुछ जरूरी चीजो के अलावा मेरी अब तक की सारी रचनाये भी खो गयी!.....उसे ढूंढवाने की मैंने बहुत कोशिश की पर वो नहीं मिल सका!............
जिन्दगी की तेज रफ़्तार!.....और देखते ही देखते मै आज अपनी उसी लेखन- कला को अपनी पहचान बना चूका हूँ!.......लेकिन अभी बहुत छोटे स्तर पर!......मुझे अपनी कहानियो के बल पर फिल्म- उद्योग में एक नया मोड़ लाना है!......जिसकी मै दिन- रात कोशिश में लगा हूँ!.........
अपने बचपन के उन लम्हों से लेकर आज तक मैंने जाने क्या नहीं खोया!.......लेकिन मुझे फक्र है की ''मै लिखता हूँ''..........और जिन्दगी जब तक साथ देगी लिखता रहूँगा!........और तब तक ही चलता रहेगा ........''मेरा संघर्ष''........................
बात उन दिनों की है जब मै 'दूसरी- कक्षा' में पढता था!.......उन दिनों आज की तरह अनगिनत मनोरंजन के साधन नहीं हुआ करते थे. ले- दे कर वही दूरदर्शन के कई सारे धारावाहिक!......और या फिर स्कूल का मैदान!....रविवार को छुट्टी का दिन हर बच्चे के लिए खुशियों का सौगात लाता था!.....सुबह से ही टीवी पर लोकप्रिय कार्यक्रम 'रंगोली', 'श्रीकृष्णा', 'कॅप्टन व्योम', 'विराट', 'बच के रहना रे', साका- लाका बूम- बूम', 'शक्तिमान' और 'आर्यमान' जैसे धारावाहिक से पूरा रविवार यादगार बन जाता था!.....पर गाँव तो आखिर गाँव ही था!...बिजली की समस्या की वजह से कभी- कभी हम इस सुख से भी वंचित रह जाते थे!........लेकिन उन दिनों एक और ऐसी चीज थी, जो न सिर्फ बच्चो, बल्कि बड़ो को भी खूब लुभाती थी!......और वो चीज थी- 'कॉमिक्स'!
जी हाँ!........कॉमिक्स ही वो चीज थी, जिसने मेरे अन्दर के लेखक को जगाया था!....उन दिनों कॉमिक्स का प्रचलन सर चढ़ कर बोलता था!.....किसी और का तो पता नहीं, पर मै तो कॉमिक्स का दीवाना था!....लेकिन बचपन के उन दिनों में पढाई के दबाव में घर के बड़े इसकी इजाजत नहीं दिया करते थे!....कभी- कभी मामा जी के घर जाने पर कई कॉमिक्स पढने को मिल जाता था!..और वो लम्हा जिन्दगी का सबसे बेहतरीन लम्हा बन जाता था!......खैर!.....मै स्कूल के दिनों की बात कर रहा था!....कुछ एकाध दोस्तों को छोड़कर, मेरे बिलकुल अलग ही स्वाभाव और सादेपन के कारण मेरी सहपाठियों से थोड़ी कम बनती थी!.......उन्ही सहपाठियों में से एक लड़का स्कूल में हमेशा कॉमिक्स लाता था!......उसके घर में कॉमिक्स की भरमार थी!......वो अपने दोस्तों की गुट बनाकर खाली समय में कॉमिक्स पढता था ......और मुझे ललचाया करता था!....लालसावश मै उनके पास जाता तो बचपने में आकर वो मुझे भगा देते थे!......ऐसा लगभग रोज ही होता था!.......एक दिन जब रोज की तरह उन लडको ने मुझे तिरस्कृत किया तो मैंने भी आवेश में आकर यूं ही कह डाला- ''मुझे जरूरत नहीं है तुम्हारे इस कॉमिक्स की!......मै इससे भी अच्छा कहानी लिख सकता हूँ!''..........उन लडको ने मेरा खूब मजाक उड़ाया!......लेकिन आवेश में कही हुई वो बात मेरी नन्ही-सी जान पर गहरा असर छोड़ गई!.....मेरे मन में लिखने की जिज्ञासा जाग गई!....उन दिनों पढ़े हुए कॉमिक्स, टीवी पर आ रहे लोकप्रिय रहस्यमयी धारावाहिकों और उस उम्र में मेरे ज्ञान के हिसाब से मैंने कुछ ही दिनों में 'शमशान का भूत', 'छिपा कमरा', 'सावधान!..मौत आ रही है', 'कलाई पट्टी और डकूरा की मौत', 'भूतिया हवेली', 'चार आत्माए', 'मुह्हल्ले के चोर' और दर्जनों रहस्यमयी कहानिया लिख डाली!......इनकी चर्चाये जब दोस्तों में होने लगी तो मै फेमश होने लगा!.....मजाक उड़ने वाले दोस्त, मेरे करीब आने लगे और मै सबका चहेता बन गया!.......इन कहानियो से मिली बचपन में उस सम्मान ने मुझे आगे और लिखने की प्रेरणा दी!.......उम्र के साथ- साथ कक्षाए भी बढती रही और मेरा ज्ञान भी बढ़ता रहा!.....और धीरे- धीरे हिंदी साहित्य में मेरी रूचि भी बढती गयी!.......और तब मैंने कुछ साहित्यिक कहानियो का भी संग्रह बना डाला, जिसे मैंने 'कथा- वृक्ष' नाम दिया!.....इसमें 'सपना या सच्चाई', 'टिन का बर्तन', 'अईवागा', 'रात्रि-सम्मलेन', 'सिक्के की आत्मकथा', 'सोने की चिड़िया', 'बसंत की वो एक रात' और कुछ अन्य साहित्यिक कहानिया भी थी!......इसके अलावा रहस्यों से मेरे लगाव को ध्यान में रखते हुए मैंने 'पिटारा' नाम का एक और संग्रह बनाया!....जिसमे मैंने जाने कितने ही रोमांचक कहानियाँ लिखी!....
सातवी- आठवी कक्षा तक पहुचने पर मेरी बड़ी बहन ने मुझे उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित किया!.....उन्होंने मुझे उपन्यास के बारे में कई जानकरिया भी दी!....और तब मैंने अगले तीन- चार सालो में 'कंटक- मणि' और 'मिशन- ब्लास्ट' नाम की दो सनसनीखेज उपन्यास लिख डाली!....और तब तक मै अपने घर वालो, दोस्तों, स्कूल, गाँव, जान- पहचान वालो और रिश्तेदारों में लेखक के रूप में मशहूर हो गया!.........बारहवी पास करने के बाद मार्केटिंग मैनेजमेंट की तैयारी के लिए मै पटना जा रहा था!....उस यात्रा में मेरा एक ब्रीफकेस चोरी हो गया!....उस ब्रीफकेस में मेरे कपड़ो, कुछ जरूरी चीजो के अलावा मेरी अब तक की सारी रचनाये भी खो गयी!.....उसे ढूंढवाने की मैंने बहुत कोशिश की पर वो नहीं मिल सका!............
जिन्दगी की तेज रफ़्तार!.....और देखते ही देखते मै आज अपनी उसी लेखन- कला को अपनी पहचान बना चूका हूँ!.......लेकिन अभी बहुत छोटे स्तर पर!......मुझे अपनी कहानियो के बल पर फिल्म- उद्योग में एक नया मोड़ लाना है!......जिसकी मै दिन- रात कोशिश में लगा हूँ!.........
अपने बचपन के उन लम्हों से लेकर आज तक मैंने जाने क्या नहीं खोया!.......लेकिन मुझे फक्र है की ''मै लिखता हूँ''..........और जिन्दगी जब तक साथ देगी लिखता रहूँगा!........और तब तक ही चलता रहेगा ........''मेरा संघर्ष''........................
Jivan Ka Dusara naam Sangarsh hai... Likhte raho...Sangarsh karte raho...Safalta jarur milegi.....
ReplyDeleteआपकी लेखनी चलती रहे!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
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